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आहार-विहार ही है सुस्वास्थ्य का मूलाधार

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आहार का अर्थ भोजन, विहार का अर्थ रहना-विचरण, यानी जिसका खान-पान, रहन-सहन, उठ-बैठ, विचरण करना आदि बिल्कुल ठीक है, वह व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ व सुखी रह सकता है। यह प्रत्येक व्यक्ति, के जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है, जिसकी पाचन क्रिया ठीक है ठीक है, पेट नर्म, हल्का व साफ रहता है, नींद अच्छी आती है, खुलकर भूख लगाती है, यह भी प्रत्येक नर-नारी के लिए अत्यन्त सौभाग्य की बात है।

आइये, प्रथम खान-पान पर थोड़ चिंतन और विचार करते हैं- भोजन के विषय में कई प्रश्न हैं किन- कब खायें? क्या खायें? कैसे खायें? वैदक वांगमय में बहुत सुन्दर ढंग से इन प्रश्नों के उत्तर दिए हैं।

पहला प्रश्न है कि कब खायें? इसका उत्तर है ''ऋतभुक'' - अर्थात समय अनुसार ही भोजन करें। भोजन उचित स्थान पर श्रद्धापूर्वक बैठकर ही खायें। भोजन का एक सुनिश्चित समय भी होना चाहिए। भूख लगने पर ही भोजन करें, बिना भूख लगने पर ही भोजन करें, बिना भूख खाना न खायें। हो सके तो दिन में दो बार ही भोजन करें। बार-बार खाना स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता। ''ऋतू'' का अर्थ पवित्र कमाई भी होता है। अर्थात् मेहनत की, खून-पसीने की कमाई खानी चाहिए। मुफ्त का भोजन ''अनृत'' (पाप) है, जो शारीरिक व मानसिक पीड़ा देता है।

दूसरा प्रश्न- क्या खायें? ''हितभुक'' जो हितकारी हो, स्वास्थ्य के अनुकूल हो। जैसे घी, दूध, दही, फल, दाल, चावल, सब्जी, खीर, हलवा, मेवा, मिष्ठान आदि बढ़िया सुपाच्य भोजन ही खायें। भोजन हल्का गर्म (गुनगुना) हो। अधिक ठण्डा व अधिक गर्म दोनों ही हानिकारक हैं। बासी व ठण्डा कई-कई दिनों तक फ्रिज में रखकर नहीं खाना चाहिए। जहाँ तक हो सके, दाल, सब्जियाँ आदि भोजन ताजा ही खायें। भोजन ग्रहण करने से पूर्व उचित-अनुचित का भली भांति विचार करके सोच समझ कर ही भोजन खायें। मन को ललचाने न दें, इसे को काबू में रखें। अदरक, नींबू आँवला, लहसुन, हरी मिर्च, सफेद मिर्च मेथी दाना, अजवाइन, सौंफ, काला नमक, सेंधा नमक, तुलसी एवं अंकुरित अन्न, चने, गेंहूँ, मुँग, उड़द आदि का सेवन अत्यन्त लाभकारी है। इसमें औषधीय गुण होते हैं। तली-भुनी, बाजार की खराब चीजें न खायें। साफ-सुथरा-शुद्ध एवं साधारण भोजन खायें। भोजन में मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कड़वा, कषैला- ये छः रस अवश्य होने चाहिए। गेहूँ, चने एवं जौ का मिला हुआ आटा हो या फिर गेहूँ के आटे में थोड़ा बेसन जरूर मिला लें। अच्छा खाओं, खुश रहो। जब कभी मजबूरी में पूड़ी, पराठें, समोसे, भूटूरे आदि पकवान खाना पड़ें, तो ऊपर से चाय, कॉफी जरूर लें या फिर गर्म पानी एक दो घूँट ले लें। भोजन से पहले चाय, दूध, जूस आदि कोई भी पेय पदार्थ न पीयें एक घण्टा पहले पी लें।

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तीसरा प्रश्न- कैसे खायें? ''मितभुक'' अर्थात् भूख से थोड़ा कम खायें। कम खाना व गर्म खाना हितकारी होता है। भोजन को खूब चबा-चबा कर ही खायें। मुँह बंद करके ही भोजन को चबायें। जल्दबाजी में खाना नहीं खाना चाहिए। भोजन के साथ पानी का प्रयोग न करें। कम से कम भोजन के आधा या एक घण्टे बाद पानी पीयें। ऋतू अनुकूल भोजन के साथ लस्सी का प्रयोग कर सकते हैं। क्रोध में, टी.वी. देखते होकर, चलते-फिरते, किसी से बात चीत करते हुए एवं मोबाइल का प्रयोग करते हुए भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन हमेशा प्रसन्नतापूर्वक ही खाना चाहिए। भोजन भी एक औषधि है, इसे दवा के रूप में खायें। रोटी बनाने से लगभग आधा घण्टा पहले आता गूँथ कर रख लेना चाहिए। पहले आटा गूँथने से रोटी अच्छी बनती है। भोजन के पश्चात् लघुशंका अवश्य करना चाहिए, इससे लाभ होता है, पेट में उष्णता नहीं रहती।

विहार : विहार अर्थात् रहन-सहन (विचरण आदि)। सोना-जागना, उठाना-बैठना इत्यादि बहुत ही अच्छा होना चाहिए। जहाँ तक हो सके प्रातः ४ से ५ बजे एक बीच जाग जायें, शय्या छोड़ दें। जल्दी जागने के लिए जल्दी सोना भी जरुरी है। रात्रि ९ व १० बजे के बीच अवश्य सो जायें, क्योंकि नींद भी शरीर की एक खुराक है, इसकी पूर्ति भी अति आवश्यक है। उठते उषापान करें, कम से कम १ लीटर पानी बिना कुल्ला किये ही पीयें। भ्रमण करें, शौच आदि से निवृत होकर सुबह खाली पेट जितना हो सके प्राणायाम व्यायाम करें। लगभग १ घण्टा नित्य अपने शरीर के लिए समय अवश्य निकालें। व्यायाम के समय या गहरा लम्बा श्वास लेते हुए नाक से ही श्वास लें, मुँह से नहीं। वज्रासन, मेंढक कूद, ऊँची कूद, रस्सी कूद अत्यन्त लाभकारी हैं। मन्द गति से दौड़ना भी ठीक है।

ठीक एंगल से स्नान करें, जल्दी-जल्दी शरीर पर पानी न डालें। अच्छी तरह स्नान करके शरीर को रगड़-रगड़ कर तौलिये से पोंछे, शरीर पर पानी न रहे। समय हो तो स्नान से पूर्व तेल मालिश जरुर करें। मालिश स्वास्थ्य का खजाना है। तेल मालिश करने के बाद कम से कम आधा घण्टे के बाद ही स्नान करें। सायंकालीन (रात्रि) भोजन के बाद भी भ्रमण अवश्य करना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार शाम अथवा रात्रि के भोजन के बाद कम से कम १०० कदम घूमना अनिवार्य बताया गया है। हाँ दोपहर के भोजन के बाद विश्राम करने का विधान है, किन्तु वेद के आदेशानुसार ''दिवा मा स्वाप्सीः'' अर्थात् दिन में नहीं सोना चाहिए। केवल थोड़ी देर आराम तो कर सकते हैं, ताकि शरीर में स्फूर्ति बनी रहे। शरीर के साथ आत्म व मन को पूर्ण स्वस्थ रखने के लिए अपने इष्ट ''ओ३म'' की नित्य उपासना करना भी अति आवश्यक है। अपन निवास-स्थान घर-आँगन, साफ सुथरा रखना चाहिए। साफ-सुथरी जगह में बीमारी नहीं फैलती। जीवन अनमोल है, इसे उत्सव बना दो। सबसे प्रीतिपूर्वक व्यवहार करें।

अनियमित आहार-विहार मन मर्जी से करते रहें और अस्पतालों के चक्कर भी काटते रहें- यह कोई जिन्दगी नहीं है। अच्छी संगति में रहें, अच्छे विचार सुने, अपने से बड़ों-अनुभवी व विद्वानों के पास ही बैठे-उठें। हमेशा समय का सद्-उपयोग करें। एक क्षण भी समय बर्बाद न करें। जो अपना काम समय पर और समय से पहले कर लेते हैं उनके पास कभी समय का अभाव नहीं रहता। अच्छा सोचें, अच्छे विचारों को ही ग्रहण करें। किसी कवि ने बहुत सुन्दर लिखा है - उठते हैं विचार तो उठता है आदमी। गिरते हैं विचार तो गिरता है आदमी || विचारों को ऊंचा बनाने की कोशिश करें। हर समय अत्याधुनिक कृत्रिम संसाधनों के सहारे न रहें। जहाँ तक हो सके, कृत्रिमता का कम से कम प्रयोग करें। अपने आप को प्रकृति से जोड़ें। खुली हवा का अधिकतर प्रयोग करें। महाशय वेगराज जी कहते थे कि- ४ बजे की हवा सौ रोगों की दवा || प्राण वायु ही जीवन का आधार है। प्राणवायु के ठीक रहने से ही शरीर ठीक रहता है। श्वास-प्रश्वास की क्रिया अर्थात नासिका के दोनों छिद्रों से श्वासों का संचार (आवागमन) निरन्तर ठीक प्रकार से होता रहे, तो समझो कि शरीर में किसी भी रोग के आक्रमण करे की सम्भावना बहतु कम रहती है। जब तक प्राण सबल रहते हैं, तब तक शरीर स्वस्थ रहता है। प्राणों के कमजोर होते ही शरीर बीमारियों का घर बनने लगता है। जैसे किसी वाहन के पहियों में हवा न हो, तो आगे चलना सम्भव नहीं होता, वैसे ही प्राणवायु के न रहने पर जीवन एक कदम आगे नहीं चल सकता। वातावरण एवं प्राणवायु को शुद्ध पवित्र बनाये रखने के लिए प्रत्येक गृहस्थी के घर में दैनिक यज्ञ (हवन) भी अवश्य होना चाहिए। बड़ी सुन्दर कहावत है कि - पहला सुख निरोगी काया। फिर दूजे हो घर में माया।

विशेष नोट : ऋषि-मुनियों एवं आयुर्वेद की विशेष खोज के मुताबिक जो लोग के तुरन्त बाद रात्रि को सो जाते हैं, वे कुछ समय बाद रात्रि को सो जाते हैं, वे कुछ समय बाद प्रायः मधुमेह (शुगर) के रोगी हो जाते हैं। विशेष रूप से युवा विवाहित स्त्री-पुरुषों को शुगर-मधुमेह से बचने के लिए यह सलाह दी जाती है कि वे भोजन के बाद कम से कम ३ घण्टे बाद ही सोयें। - आचार्य रामसुफल शास्त्री


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