विशेष :

खूब बढ़ाये, खून हरी-हरी पालक

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palak

सर्दियों के मौसम में हरी सब्जियों की खूब बहार रहती है। इन्हीं में से एक है पालक। इसे खाने से पहले भली प्रकार से गहरे पानी में धोना न भूलें। पालक पोषक तत्वों से भरपूर है। इसमें मौजूद कैल्शियम और हरित तत्व हड्डियों को मजबूती प्रदान करते है हैं। पालक में पाए जाने वाले विटामिन ए और सी, रेशे फोलिक एसिड और मैग्नेशियम कैंसर से लड़ने में मदद करते है, जिसमें कोलन, फेफड़े में होने वाला कैंसर और स्तन कैंसर प्रमुख है। पालक ह्रदय संबंधी बिमारियों से लड़ने में भी मददगार होता है। इसके नियमित सेवन से बुजुर्गो की कमजोर होती याददाश्त भी मजबूत होती है।

पालक में लोहा विशेष रूप में पाया जाता है। लौह तत्व मानव शरीर के लिए उपयोगी, महत्वपूर्ण, अनिवार्य होता है। लोहे के कारण ही शरीर में रक्त में स्थित रक्ताणुओं में रोग निरोधक क्षमता तथा रक्त में रक्तिमा (लालपन) आती है। लोहे की कमी के कारण ही रक्त में रक्ताणुओं की कमी होकर प्रायः पाण्डु रोग उत्पन्न हो जाता है। लौह तत्व की कमी से जो रक्ताल्पता अथवा रक्त में स्थित रक्तकणों की न्यूनता होती है, उसका तात्कालिक प्रभाव मुख पर विषेशतः ओष्ट, नासिका, कपोल, कर्ण एवं नेत्र पर पड़ता है, जिससे मुख की रक्तिमा एवं कांति विलुप्त हो जाती है। कालान्तर में संपूर्ण शरीर भी इस विकृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। लोहे की कमी से शक्ति ह्रास, शरीर निस्तेज होना, उत्साहीनता, स्फूर्ति का आभाव, आलस्य, दुर्बलता, जठराग्नि की मंदता, अरुचि, यकृत आदि परेशानियाँ होती है।

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पालक वायुकारक, शीतल, कफ बढ़ाने वाली, मल का भेदन वाली, श्वास, पित्त, रक्त विकार एवं ज्वर को दूर करने वाली, रुचिकर और शीघ्र पचने वाली होती है। ये कठिनाई से आने वाली श्वास, यकृत सूजन और पाण्डु रोग की निवृति हेतु उपयोग में लाए जाते हैं। गर्मी का नजला, सीने और फेफड़े की जलन में भी यह लाभप्रद है। यह पित्त की की तेजी को शांत करती है, गर्मी की वजह से होने वाली पीलिया और खाँसी में यह बहुत लाभदायक है।

स्त्रियों के लिए पालक का शाक अत्यंत उपयोगी है। मुख का नैसर्गिक सौंदर्या एवं लालिमा बढ़ाने के लिए नियमित रूप से पालक के रस का सेवन करना चाहिए। इसे पकाकर खाने की अपेक्षा यदि कच्चा ही खाया जाए, तो अधिक लाभप्रद एवं गुणकारी है। पालक के रक्त शुद्धि एवं शक्ति का संचार होता है। पालक की पत्तियों को बना पानी डाले कुचलकर उसका रस निकालकर लगभग १०० मि.ली. पीने से पेट खूब साफ हो जाता है। इसे प्रातः ८ बजे पीना चाहिए। अन्य विकारों में भी पालक का रस इसी प्रकार सेवन करना चाहिए। इसका काढ़ा ज्वर प्रधान रोगों में दिया जाता है। गले की जलन दूर करने के लिए इसका रस विशेष उपयोगी है। आँतों के रोग में पालक की तरकारी विशेष हितकर है, क्योंकि इसम आँत को त्रास देने वाले तत्वों का अभाव है।

पालक से अनेक विकारों में लाभ होता है, जैसे घाव देरी से भरना, रतौंधी, श्वेतप्रदर, भूख कम लगना, अजीर्ण, दंतक्षय या पायरिया, नेत्रशूल, क्षय रोग, बालों का गिरना, सिर दर्द, बेरी-बेरी, शक्ति का ह्रास, अतिसार, संग्रहणी, चक्कर आना, घातक रक्तक्षय, पाण्डु रोग, कामला, शरीर का भार घटना, वमन, स्मरण शक्ति का क्षय, दाँत के रोग, जिह्वा तथा अन्नप्रणालीय शोथ आदि। मूँग की दाल (छिलके सहित) को पकाकर, उसमें पालक के पत्ते मिलाकर, उसका संस्कारित सूप रोगी को के लिए हितकारी है। स्वस्थ व्यक्ति भी इसका नियमित सेवन कर सकते हैं। - राष्ट्र-किंकर

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