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बाजीराव मस्तानीयम-8

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Bajirao Mastaniyam 8

मस्तानि-कन्या जनकेन दत्ता तया च साकं वरदक्षिणार्थम् ।
राज्ये च तत्सैन्यसमक्षमेव ग्रामोपहारेण समर्चितः सः॥71॥

रावाय तस्मै वरदक्षिणार्थम् श्रीनर्मदासन्निधिभूमिभागान् ।
ग्रामोपहारन् निजराज्यमध्ये श्रीछत्रसालः प्रददौ विवाहे॥72॥

खड्गं निधाय प्रथिते विवाहे सेनासमक्षं परिणीय कन्याम्।
वधूश्‍च सा क्षत्रियराजकन्या वरस्तु धन्यो निजखड्गधारी॥73॥

विशाल-भालोऽरुणकान्तिरूपः स्वतेजसा शत्रुविनाशकःसः।
मुमोच दर्पं मदनस्तु रावम् वीक्ष्याधिकं तां च रतिं द्वितीयाम्॥74॥

बुन्देललोका मिलनं तयोश्‍च सौन्दर्य-वीरत्व-समागमं तम्।
विलोक्य जाता मुदिताननाश्‍च न पुण्यपुर्यां स्वजनास्तु तुष्टाः॥75॥

अश्‍वाधिरूढः शिबिकाग्रभागे स्वीकृत्य राज्ञार्पित-वैभवं च।
जनैश्‍च दृष्टो रणदारुणोऽपि रागेण रम्यः सुखदः स रावः॥76॥

दृष्टा वधूः सूक्ष्ममुखांशुकात् सा पटाच्च सूक्ष्मात् शिबिकान्तरस्था।
मधुप्रकोष्ठात् मधु निःसृतं तत् रूपं वरं तन्मधुरं हि दूरात्॥77॥

अग्रेऽश्‍वपृष्ठे करभल्लयुक्तः पश्‍चात् नवोढा-शिबिकान्वितः सः।
पश्‍चात् ससैन्यश्‍च जनैः स दृष्टः नक्षत्र-तारनुगतः शशीव ॥78॥

दृष्टा वधूः सूक्ष्मपटाभिरामा रावानुगा सा शिबिकानुगर्भात्।
शौर्यं यथा श्रीरनुगच्छतीह बभौ तथा रावपदानुगा सा॥79॥

श्रीबाजिरावस्य कृते कृतज्ञा स्वयं विधात्रा भुवि निर्मितासौ
धन्याभवत् पण्डितराजमाप्य प्रिया लवङ्गी यवनीव मुग्धा॥80॥

हिन्दी भावार्थ

मस्तानी और राव के विवाह के प्रसंग पर राव के सैन्य के समक्ष कन्या के पिता श्री छत्रसाल ने कन्यादान किया और मस्तानी के साथ बाजीराव को (प्रथा के अनुसार) वर-दक्षिणा के रूप में बुन्देलखण्ड राज्य के कुछ गाँव भी उपहार में देकर राव का वरपूजन सम्पन्न किया। (इतिहास के अनुसार राजा छत्रसाल ने राव को विवाह में तीन भू-भाग दिये थे। आगे चलकर मस्तानी के वंशजों को बाँदा का राज्य मिला) ॥71॥

उस समय की प्रथा के अनुसार राजा छत्रसाल ने मस्तानी और राव के विवाह में वरदक्षिणा के रूप में अपने राज्य के कुछ गाँव जो नर्मदा के किनारे स्थित थे, उपहार स्वरूप राव को दिये। (इस से विदित होता है कि मस्तानी का विवाह सम्मानपूर्वक सम्पन्न हुआ था॥72॥

तत्कालीन प्रथा के अनुसार दोनों की सेनाओं के समक्ष क्षत्रिय कुल की राजकन्या मस्तानी, वधू के रूप में बाजीराव के साथ विवाहित हो गई। राव भी समय के दायित्व के अनुरूप विवाह में शस्त्र धारण कर धन्य हुए॥73॥

उस बाजीराव का भाल विशाल था । उसकी कान्ति भी अरुणिमा से युक्त थी। वह अपने तेज से शत्रुओं को नष्ट करता था। ऐसे बाजीराव को तथा दूसरी रति देवी के समान मस्तानी को देखकर (स्वर्ग में) कामदेव का गर्व हरण हो गया॥74॥

श्रीबाजीराव और मस्तानी के मिलन से बुन्देलखण्ड राज्य की प्रजा प्रसन्न हुई। उन दोनों के संयोग को उन्होंने सौंदर्य व शौर्य का समागम माना। किन्तु पुणे नगरी में बाजीराव का परिवार नाराज हो गया॥75॥

वधू मस्तानी की शिबिका के आगे घोड़े पर सवार होकर तथा राजा छत्रसाल द्वारा प्रदत्त सम्पत्ति ग्रहण कर (पुणे जाने के लिए) निकले हुए बाजीराव युद्ध में भयंकर किन्तु (वहाँ) प्रेम के कारण सौम्य दिखाई देने से लोगों को सुखदायक लगे॥76॥

लोगों को वधू कैसे दिखाई दी? वधू के मुख पर महीन बुरखा था और शिबिका पर जो परदे थे वे भी पारदर्शी थे। क्या वधू के छत्ते से शहद टपक पड़ा था? एक बात अवश्य है, किसी सुन्दर रूप की झलक कुछ दूर से दिखाई दे तो वह रमणीय होती है॥77॥

श्री छत्रसाल से बिदाई लेकर मस्तानी के साथ पुणे को जाते समय आगे राव घोड़े पर सवार होकर चल रहे थे । हाथ में भाला, उनके पीछे-पीछे नववधू की पालखी आ रही थी और बाद में सैन्य। ऐसे राव को लोगों ने उसी प्रकार देखा, जिस प्रकार नक्षत्र और तारकाएँ चन्द्रमा का अनुसरण करती दिखाई देती हैं॥78॥

लोगों ने मस्तानी नववधू को देखा जो शिबिका में बैठी थी, महीन परदों के कारण राव के पीछे अनुसरण करती हुई लोगों को दिखाई दी। पारदर्शी परदे से वह और अधिक सुन्दर दिखाई दे रही थी। जिस प्रकार यहाँ पराक्रम का अनुसरण जयश्री करती है, उसी प्रकार बाजीराव का अनुसरण करने वाली मस्तानी वधू के रूप में सुन्दर दिखाई दी॥79॥

श्रीबाजीराव के उपकार को मानने वाली वह मस्तानी स्वयं ब्रह्मदेव द्वारा सुन्दर रूप में निर्मित थी। और जिस प्रकार पूर्व में बादशाह जहाँगीर ने संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित और कवि श्री पण्डितराज जगन्नाथ को भेंट स्वरूप लवंगी नामक यवनकन्या दी थी और वह धन्य हो गई थी, उसी प्रकार मस्तानी भी बाजीराव को पाकर धन्य हो गई ॥80॥• - डॉ. प्रभाकर नारायण कवठेकर (दिव्ययुग - मार्च 2008)


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