विशेष :

दान के अधिकारी

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Donation Officer
ओ3म् ते वृक्णासो अधिक्षमि निमितासो यतस्रु चः।
ये नो व्यन्तु वार्यं देवत्रा क्षेत्रसाधसः॥ ऋग्वेद 3.8.7॥

शब्दार्थ- (अधि क्षमि) पृथिवी पर, संसार में (देवता) ज्ञानी और दानशील मनुष्यों के मध्य में (ये) जो (देवत्रा) छिन्न, कटे हुए अनासक्त हैं, जो (निमितासः) अत्यन्त न्यून आवश्यकताओं वाले हैं, जो (यतस्रुचः) यतस्रुच हैं, जिनका चम्मच सदा चलता रहता है, जो (क्षेत्रसाधसः) क्षेत्र-साधक हैं, (ते) वे लोग (नः) हमारे (वार्यम्) वरणीय धन को, दान को (व्यन्तु) प्राप्त करें।

भावार्थ- वेद के अनुसार मनुष्य को सैकड़ों हाथों से कमाना चाहिए और सहस्रों हाथों से दान करना चाहिए। परन्तु दान किसे देना चाहिए? दान के वास्तविक अधिकारी कौन हैं? मन्त्र में दान के अधिकारियों का ही वर्णन है। इस पृथिवी पर दान के अधिकारी वे हैं-

1. जो अनासक्त हैं। जो संसार में रहते हुए भी इसमें लिप्त नहीं होते। ऐसे अनासक्त व्यक्तियों को दिया दान लोकोपकार में ही लगेगा।
2. दान उन्हें देना चाहिए जिनकी अपनी आवश्यकताएँ बहुत न्यून हों। ऐसे व्यक्तियों को दिये हुए दान का अपव्यय नहीं होगा।
3. दान उनको देना चाहिये जिनका चम्मच सदा चलता रहता हो। जो दान को लेकर उसे आवश्यकता वालों को देते रहते हों, जो धन लेकर दीन, दरिद्रों और दुःखियों में बाँट देते हों।
4. दान उन्हें देना चाहिए जिन्होंने अन्न के, विद्या के, धर्म-प्रचार के, स्वास्थ्य-सम्पादन के क्षेत्र खोल रक्खे हों। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती

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